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कांग्रेस ने नये सेनाध्यक्ष विपिन रावत की नियुक्ति पर कुछ प्रश्न उठाये हैं। इन प्रश्नों के पीछे के कारणों को जानना हम सबके लिए आवश्यक है। आपको ध्यान होगा कि भारत ने हाल ही में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की और 50 से भी अधिक आतंकियों और पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला। आपको संभवत: पता ना हो कि इस सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे किसका मस्तिष्क था, और सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले जवानों को दिशा निर्देश किसने दिए थे? इस सर्जिकल स्ट्राइक को संपन्न करने के लिए विपिन रावत ने ही सफल रणनीति बनायी थी। इससे पहले मणिपुर में भी इन्हीं के परामर्श पर सर्जिकल स्ट्राइक की गयी थी और सफलतापूर्वक 30 से भी अधिक नागा आतंकियों को मारकर सेना के जवान वापस लौट आये थे।
इन दोनों सर्जिकल स्ट्राइक्स से विपिन रावत ने प्रधानमंत्री मोदी के मन बस गये। मोदी ऐसे ही चेहरों की तलाश में रहते हैं जो अपने काम में माहिर हों और सौंपे गये दायित्वों का कुशलता से निर्वाह कर सकें। मोदी स्वयं ऑपरेशन करके बीमारियाँ दूर करने में विश्वास रखते हैं, ऑपरेशन में रिश्क भी होता है लेकिन सफलता अवश्य मिलती है इसलिए वे ऑपरेशन करने वाले अफसरों को अपनी टीम में रखते हैं। विपिन रावत के बारे में यह जानना भी आवश्यक है कि उन्हें चीन, पाकिस्तान सीमा के अलावा पूर्वोत्तर में घुसपैठ रोधी अभियानों में दस वर्ष तक कार्य करने का अनुभव है,मणिपुर में सफलतापूर्वक सर्जिकल स्ट्राइक करवाया।
रावत 1978 में भारतीय सेना में सम्मिलित हुए थे, उन्हें 38 वर्ष का अनुभव है, उन्होंने पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ चीन सीमा पर भी लंबे समय तक कार्य किया है। वे नियंत्रण रेखा की चुनौतियों की गहरी समझ रखते हैं। चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा के हर खतरे से भी वे परिचित हैं। ऐसे में उनकी योग्यता को और अनुभवों को राष्ट्र के लिए प्रयोग करना मोदी की दूर की दूरदृष्टि रही है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष ने अपनी सेवानिवृत्ति से दो चार दिन पहले ही भारत को सर्जिकल स्ट्राइक के गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी। इसलिए मोदी किसी भी स्थिति को संभालने वाले सेनाध्यक्ष के हाथों में देश की सेना की बागडोर देना चाहते थे।
रक्षा मंत्रालय ने सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति को तीन नाम भेजे थे। जिनमें लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बख्शी के बाद दूसरा नाम बिपिन रावत का था, जबकि तीसरा नाम पी. एम. हैरिश का था। तीनों नामों में से प्रधानमंत्री मोदी को किसी एक का चुनाव करना था, उन्होंने विपिन रावत के नाम पर अपनी मुहर लगा दी। प्रधानमंत्री नये सेनाध्यक्ष के विषय में अच्छी तरह जानते हैं कि लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत को ऊंची चोटियों की लड़ाई में कुशलता प्राप्त है। वे कश्मीर घाटी के मामलों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। लेफ्टिनेंट जनरल रावत को काउंटर इंसर्जेंसी का विशेषज्ञ माना जाता है। कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय राइफल्स और इंफैंट्री डिवीजन के वे कमांडिंग ऑफिसर रह चुके हैं। लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में चमत्कारिक रुप से बच गए थे जब वे दीमापुर स्थित सेना मुख्यालय कोर 3 के कमांडर थे।
लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत 2008 में कांगों में यूएन के शांति मिशन को कमान संभाल चुके हैं। इस दौरान उनके द्वारा किए गए काम काफी सराहनीय रहे। यूनाइटेड नेशंस के साथ काम करते हुए भी उनको दो बार फोर्स कमांडर कमेंडेशन का अवार्ड दिया गया। लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत ने मिलिट्री मीडिया स्ट्रेटजी स्टडीज में रिसर्च की जिसके लिए 2011 में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी ने उनको पीएचडी की उपाधि दी।
लेफ्टिनेंट जनरलों में से लेफ्टिनेंट जनरल रावत को उत्तर में पुनर्गठित सैन्य बल, लगातार आतंकवाद एवं पश्चिम से छद्म युद्ध एवं पूर्वोत्तर में हालात समेत उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए सर्वाधिक उचित पाया गया। लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद हैं। दरसअल, पिछले साल म्यांमार में नगा आतंकियों के खिलाफ की गई सफल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से ही वे पीएम की दृष्टि में चढ़ गए थे। पाक अधिकृत कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
नियुक्ति के इस सारे प्रकरण में विशेष बात यह है कि सेवानिवृत्त सैनिक सरकार के बचाव में आ गए हैं। सेवानिवृत्त सैनिकों का मानना है कि नियुक्ति में सिर्फ वरिष्ठता का पहलू नहीं देखा जा सकता है। मेजर जनरल (रिटायर्ड) गगनदीप बख्शी का मानना है कि विपिन रावत को जम्मू-कश्मीर का कॉम्बैट एक्सपीरियंस है, इसलिए उन्हें प्राथमिकता दी गई। जाने-माने रक्षा जानकार ब्रह्मा चेलानी ने भी कहा है कि सेना, न्यायपालिका और नौकरशाही के प्रोन्नति में योग्यता ही देखी जानी चाहिए। गौरव आर्य ने कहा है कि वरिष्ठता कोई नीति नहीं है और देश का नायक होने के नाते प्रधानमंत्री को ऐसा करने का अधिकार है।
के. खुराना का कहना है कि क्या कांग्रेस ने कभी जवाब दिया कि उसकी सरकार ने अस्सी के दशक में ले.ज.एस.के सिन्हा के मामले में वरिष्ठता को क्यों नजरअंदाज किया था? वैसे इस नियुक्ति में कोई विवाद नहीं होना चाहिये क्योंकि राजा को अपना सेनानायक चुनने का अधिकार होना चाहिए लेकिन कांग्रेस इस नियुक्ति पर विवाद कर रही है।
इस समय देश के लिए पूर्णत: समर्पित होकर काम करने वाले तीन लोग एक साथ बैठने की स्थिति में आ गये हैं। इनमें से पहले हैं मोदी, दूसरे हैं डोभाल और तीसरे हैं विपिन रावत। तीनों ऑपरेशन करने में उस्ताद हैं, ऊपर से नए रॉ चीफ से देशद्रोहियों में खलबली मच गई है। प्रधानमंत्री मोदी चुपचाप रहकर देश के दीर्घकालीन हितों को साधते हुए निर्णय लेते हैं, निश्चय ही ये निर्णय ऐसे होते हैं कि जिनका दूरगामी परिणाम राष्ट्र के हित में ही आना निश्चित है। ऐसे निर्णयों को देखकर एक अच्छे विपक्ष की भूमिका निभाते हुए कांग्रेस को उनके समर्थन में आना चाहिए, परंतु यदि कांग्रेस यदि ऐसा करती है तो वह उसे अपने विपक्ष के धर्म के विरूद्घ मानकर अपने लिए आत्महत्या जैसा कदम मानने लगती है। जबकि ऐसा नही है यदि वह प्रधानमंत्री के उचित निर्णयों या सुरक्षा आदि से जुड़े निर्णयों को यह कहकर अपना समर्थन देती है कि ये राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े निर्णय हैं इसलिए वह इन पर कुछ नही कहेगी तो इससे जन सामान्य में कांग्रेस का सम्मान बढ़ेगा ही, घटेगा नही। कांग्रेस को किसी भी प्रकार के अतार्किक प्रश्न से बचकर चलना होगा। आज वह चाहे कितने ही नीचे के पायदान पर क्यों न खड़ी हो, पर आने वाला कल उसका भी हो सकता है, इसे भारतीय लोकतंत्र में कोई भी स्वीकार कर सकता है, तो कांग्रेस को भी वर्तमान को स्वीकार करना चाहिए।
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